"न पाने की ख़ुशी है कुछ, न खोने का ही कुछ ग़म है
ये दौलत और शोहरत सिर्फ कुछ ज़ख्मों का मरहम हैं
अजब सी कश्मकश है रोज़ जीने रोज़ मरने में
मुक़म्मल ज़िन्दगी तो है, मगर पूरी से कुछ कम है"
KUMAR VISHVASH
Thursday, 17 September 2015
bahut dino se nind nahi a rahi hai
माँ की सेवा ही में उसने उम्र बशर की ये माँ की दुआ थी कि बददुआ बेअसर थी
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