"न पाने की ख़ुशी है कुछ, न खोने का ही कुछ ग़म है ये दौलत और शोहरत सिर्फ कुछ ज़ख्मों का मरहम हैं अजब सी कश्मकश है रोज़ जीने रोज़ मरने में मुक़म्मल ज़िन्दगी तो है, मगर पूरी से कुछ कम है" KUMAR VISHVASH
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