"न पाने की ख़ुशी है कुछ, न खोने का ही कुछ ग़म है
ये दौलत और शोहरत सिर्फ कुछ ज़ख्मों का मरहम हैं
अजब सी कश्मकश है रोज़ जीने रोज़ मरने में
मुक़म्मल ज़िन्दगी तो है, मगर पूरी से कुछ कम है"
KUMAR VISHVASH
Wednesday, 11 May 2016
LOVE NATURE
मोर अगर नाचा जंगल में कोन उसे ताकेगा
बदली ढक ले चाँद अगर फिर कैसे वो झांकेगा
नारी भी कुछ कर सकती है अगर मिलेगा मौका
पर कोई कूड़ मगज अज्ञानी अपनी ही हाँकेगा
शालिनी शर्मा
अपने पाठकों का तहेदिल से आभार जिन्होने आशा से अधिक आशीर्वाद ,और स्नेह दिया है।
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