एक बार फिर क्रोध में आकर , धरती ने धमकाया
कांप कांप के धरती ने ,सबका दिल दहलाया
महाविनाश उत्तराँचल का हम अभी भूल नहीं पाये
एक बार फिर संकट लेकर धरा के कम्पन आये
शालिनी शर्मा
मन की दरार हो या धरती की
जब दरार पड़ जाती है
हर दरार से सुगम राह की
दुश्वारी बढ़ जाती है
धरती की दरारो को कम करने का
उपाय, कोई आस नहीं
पर मन की दरारे कम करने का
हम करते कोई प्रयास नहीं
शालिनी शर्मा
कांप कांप के धरती ने ,सबका दिल दहलाया
महाविनाश उत्तराँचल का हम अभी भूल नहीं पाये
एक बार फिर संकट लेकर धरा के कम्पन आये
शालिनी शर्मा
मन की दरार हो या धरती की
जब दरार पड़ जाती है
हर दरार से सुगम राह की
दुश्वारी बढ़ जाती है
धरती की दरारो को कम करने का
उपाय, कोई आस नहीं
पर मन की दरारे कम करने का
हम करते कोई प्रयास नहीं
शालिनी शर्मा
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